आरज़ू

मेरी बातों का ज़रा सा भी लगे बुरा तुम्हे 'आरज़ू'
कुछ न कहूँगा पर मुझे इस तरह सताया ना करो

हमें पता है कि मिलन की बेला अब ना आएगी
कम-अज़-कम मेरे ख्वाबों से तो जाया ना करो

याद-ओ- ख़्वाब ही बचे है मेरे ज़ेहन-ओ-तसव्वुर में
याद-ओ-ख़्वाब से तुम 'प्लीज़' मेरे जाया ना करो

लोग ज़ालिम है, समझ लेंगे निगाहों की हलचल
आँखों में अपने कभी मेरे लिए आंसू लाया ना करो

कोई जानेगा नहीं और कोई समझेगा भी नहीं
अपने दिल का हाल किसी को भी बताया ना करो

ज़ख्मे दिल पर कोई मरहम ना लगायेगा 'आरज़ू'
रकीब क्या हबीब को भी ज़ख्मे दिल दिखाया ना करो

मैंने हाल ही में "मेरा अस्तित्व" ब्लॉग पर लिखी एक रचना पर यह टिप्पडी करी थी, वो रचना है,



हमारे ग़मों से घबराया ना करो,
हमारे आंसुओं पे आंसू बहाया ना करो ,
"भाव" के लूटेरों ने, खूब लूटा है हमें,
ऐसे में, फ़िर मिलने की आस बंधाया ना करो ।



सच बात तो ये है कि मुझे यह ब्लॉग "ज़िन्दगी की आरज़ू" बनाने का ख़याल "मेरा अस्तित्व" ब्लॉग को देखने और पढ़ने के बाद आया और मेरे लफ्ज़ और शाएरी इसी ब्लॉग की टिप्पडीयों से निकले, वैसे तो मैं जब हाई स्कूल में था तभी से शेर ओ शाएरी, ग़ज़लों और किस्से कहानियो का बहुत शौक़ था मगर शहर में आकर सब कुछ जैसे ख़तम सा हो गया था मगर अब इसे प्रेरणा कहें या पुराना शौक़ दुबारा जाग गया, जो भी है........आपके सामने है।

4 टिप्पणियाँ:

Mishra Pankaj ने कहा…

बहुत अछ्छी कविता!!!

हमें पता है कि मिलन की बेला अब ना आएगी
कम-अज़-कम मेरे ख्वाबों से तो जाया ना करो

याद-ओ- ख़्वाब ही बचे है मेरे ज़ेहन-ओ-तसव्वुर में
याद-ओ-ख़्वाब से तुम 'प्लीज़' मेरे जाया ना करो

ऊपर के दोनों लाइनों में आपकी भावनात्मक अभिव्यक्ति में बारंबरता यानी दोहराव आ गया है। लिखते स‌मय इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि जब आप कुछ लिखें, तो उसके भाव में रिपिटेशन न हो।

Saleem Khan ने कहा…

नदीम भाई, सबसे पहले तो रांची(हल्ला) से लखनऊ आने के लिए शुक्रिया | आपका ब्लॉग देखा, हमें अच्छा लगा और बहुत कुछ सिखने को भी मिला |

इंशा अल्लाह, मैं आपकी इस बात का ख्याल रखूँगा | शुक्रिया ||

बेनामी ने कहा…

ji aapke is aadar ke liye bahut bahut aabhaari hoon salim ji..

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