वो आज भी मेरा माज़ी क्यूँ है?


ज़माना गुज़र चुका है

उन सन्नाटों को गुज़रे हुए

आज भी इन नज़रों में,

उसकी खामोशियाँ क्यूँ है?


उसके शहर, गली को छोड़ चुका

उसकी यादों को दिल से निकाल चुका

मेरे दिल में आज भी

उसी की धड़कने क्यूँ हैं?


ज़िक्र करना छोड़ दिया

उसने गली का रास्ता छोड़ दिया मैंने

फिर भी बेवफा होकर आज भी

वो इतना याद आता क्यूँ है?


कितने दिन और कितनी रातें हो गईं

बिछड़े एक दूजे को

फिर भी वो अजनबी

मेरे दिन और रात में शामिल क्यूँ है?


ख़त्म हो गया मरासिम उससे

जिंदा हैं लेकिन सांसों में

मेरे मौजूदा में

वो आज भी मेरा माज़ी क्यूँ है?
वो आज भी मेरी आरज़ू क्यूँ है....???

4 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

bahut hi shandar , bahvbhini rachna.........ek dum dil se nikal kar seedhe dil mein utar gayi.

Saleem Khan ने कहा…

यह रचना आप भड़ास फॉर यूपी (http://up4bhadas.blogspot.com) पर भी पढ़ सकते हैं!

सलीम खान

Saleem Khan ने कहा…

धन्यवाद वंदना जी,

kshama ने कहा…

आज आपके इस ब्लॉग पे पहली बार आयी ...हरेक रचना और साथ दी तसवीर बेहद खूबसूरत है ..
जगजीत और लताजी का गीत सुना है ..यहाँ पे किसी वजह से नही 'play' हुआ ..लेकिन नगमा बेहद सुंदर है ..जगजीत सिंह को लता जी के साथ गानेकी बरसों ख्वाहिश रही ...और 'सजदा ' से वो पूरी हुई ..
Ab is blog kaa bhee anusaran karoongee..

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