याद तो आता हूँ ना में तुम्हें आरज़ू ! -presented by Saleem Khan

कभी अगर शाम हो और तन्हाई का आलम हो,
सन्नाटे में चीरता हुआ एक एहसास दिल को तेरे,
मेरी याद तो दिलाता होगा तुम्हें 'आरज़ू'

सुबह सुबह जब खामोशी से नींद खुलती होगी,
फ़िर आँख खुलते ही मुझे नज़दीक न पाना,
मेरी याद तो दिलाता होगा तुम्हें 'आरज़ू'

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