सजाया था जिसके लिए फूलों का गुलशन मैंने; वो ही पत्थर लिए हर लम्हा तलाशता है मुझे !

चेहरा बदल-बदल कर तलाशता है मुझे
वक़्त का हर एक लम्हा तलाशता है मुझे

सजाया था जिसके लिए फूलों का गुलशन
वो ही पत्थर लिए हर लम्हा तलाशता है मुझे


समन्दर ने तो हर सू मुझे सुकून दिया
पानी का हर एक क़तरा तलाशता है मुझे


जिस्म में इस तरह समाया हूँ उसके 
ख़ून का हर एक क़तरा तलाशता है मुझे

2 टिप्पणियाँ:

समंदर ने तो हर सू मुझे सुकून दिया,
पानी का हर एक क़तरा तलाशता है मुझे।

बहुत ही अच्छी भावपूर्ण ग़ज़ल।

kshama ने कहा…

जिस्म में इस तरह समाया हूँ उसके
ख़ून का हर एक क़तरा तलाशता है मुझे
Wah! Kamaal ka likha hai!

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