साहिल पे आके खाया है मैंने धोका, अच्छा ही हुआ जो पतवार छुट गया !


लेना ही नहीं है अब नामे मोहब्बत
अच्छा ही हुआ जो भरम टूट गया

साहिल पे आके खाया है मैंने धोका
अच्छा ही हुआ जो पतवार छुट गया


निगाहों में रहती थी हर वक़्त तेरी सूरत
अच्छा ही हुआ जो उजाला रूठ गया


तुझे देखा जो ग़ैर की बाँहों-पनाहों में
अच्छा ही हुआ जो मुझसे तू छुट गया

2 टिप्पणियाँ:

POOJA... ने कहा…

bahut pyaari aur pyaar se bhari hui rachna...

kshama ने कहा…

निगाहों में रहती थी हर वक़्त तेरी सूरत
अच्छा ही हुआ जो उजाला रूठ गया
Aseem dard bhara in panktiyon me!

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