गर वो चाहे तो खुल जाए ज़ुल्फों की सारी लटें, आईना ऐसा लगा जो अन्दर नहीं खुलने देता !


ख़्वाहिश है अपनी पस्ती से निजात पा जाऊं
कौन डर मुझमें है जो दर-ए-नसीब नहीं खुलने देता


हथेलियों में है लकीरें ऐसी जो जज़ीरों से हो भरी
कौन हाथों से जंज़ीर-ए-जजीरा नहीं खुलने देता


'गर वो चाहे तो खुल जाए ज़ुल्फों की सारी लटें  
आईना ऐसा लगा जो अन्दर नहीं खुलने देता 


उसकी शख्सियत है गुमनाम सी शहर भर में
अपना भेद वो किसी पर नहीं खुलने देता 


खुला पड़ा है आसमान मंज़िल-ए-सफ़र के लिए 
कौन है जो रास्ता बाहर नहीं खुलने देता 


ज़ेहन-ओ-जिस्म में आग का दरिया है भरा
पर एक चिंगारी वह दिल में नहीं जलने देता

1 टिप्पणियाँ:

Saleem Khan ने कहा…

jane wo kaise lo g the jinke pyar ko pyar mila ........!!!!!!!!!!!!!!?????????????????

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