मोहब्बत की राह पर चलते-चलते, अब वो ऐसा क्यूँ कहती है कि मैं उसकी आरज़ू ना करूँ !












मोहब्बत की राह पर चलते-चलते 
अब वो ऐसा क्यूँ कहती है
कि मैं उसकी आरज़ू ना करूँ !

साथ जीने मरने की क़समें ख़ा कर
अब वो ऐसा क्यूँ कहती है
कि मैं उसकी जुस्तजू ना करूँ !

आह ! मैं ही समझ ना सका कि
उसके घर तो बारात आई थी
और धूम से बजी शहनाई थी
शायेद इसीलिए कहती है
कि मैं उसकी आरज़ू ना करूँ !

उसने निभाया समाजों का धरम
उसने रखा बाबुल का भरम
शायेद इसीलिए कहती है
कि मैं उसकी जुस्तजू ना करूँ !

कहती है कि उसके ख़्याल में ना खोऊं
और उसे याद करके अब ना रोऊं
उसे अब भी मेरे हालात की चिंता है
शायेद इसीलिए कहती है
कि मैं उससे अब गुफ्तगू ना करूँ !

लेकिन कैसे मैं उसके ख़्यालों में ना खोऊं
और कैसे उसे याद करके ना रोऊं
कैसे मैं उसकी आरज़ू ना करूँ
कैसे मैं उसकी जुस्तजू ना करूँ ?

2 टिप्पणियाँ:

सदा ने कहा…

कि मैं उसकी आरज़ू ना करूँ .......बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति ।

kshama ने कहा…

लेकिन कैसे मैं उसके ख़्यालों में ना खोऊं
और कैसे उसे याद करके ना रोऊं
कैसे मैं उसकी आरज़ू ना करूँ
कैसे मैं उसकी जुस्तजू ना करूँ ?
Aarzu na karna ,bhula dena to waaqayi bada mushkil hota hai!

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