शाख़-ए-आशियाँ छूट गया, एक 'परिंदा' टूट गया !


शाख़-ए-आशियाँ छूट गया, एक 'परिंदा' टूट गया
अपना कहते-कहते क्यूँ, बीच सफ़र में लूट गया ?

ज़िन्दगी भर साथ निभाने का वादा करके
अब क्यूँ मुझसे वो, पल भर में रूठ गया ?

दुनियाँ भर की सैर कराके मेरा हमसफ़र
मंज़िल से पहले अपने ही शहर में छूट गया !

क़िस्मत क्या ऐसी भी होगी, मालूम न था
साहिल से पहले पतवार समंदर में छूट गया !

दिल तक पहुँचते-पहुँचते महबूब का प्यार
क्यूँ ज़ख्म बन कर जिगर में फ़ूट गया ?

आँखों के तीर ठीक निशाने पर लगाकर 'सलीम'
क्यूँ दिल पर निशाना, एक नज़र में चूक गया ?


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दीपावली की दिली मुबारक़बाद आप सभी ब्लॉगर्स और पाठक बन्धुवों को !
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10 टिप्पणियाँ:

बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना

आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...

Ayaz ahmad ने कहा…

अच्छी रचना

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

Nice post .

vandana gupta ने कहा…

ओह! आज की रचना तो बेहद दर्द भरी है………………एक से बढ्कर एक है हर पंक्ति।

शाख़-ए-आशियाँ छूट गया, एक 'परिंदा' टूट गया
अपना कहते-कहते क्यूँ, बीच सफ़र में लूट गया ?

सलीम जी क्या बात हुई ....?
ये दिल के टुकडे टुकडे कर कौन चला गया .....>
अच्छी नज़्म ....!!

You might also like:की दूसरी तस्वीर चोरी करने का मन कर रहा है ....!

Saleem Khan ने कहा…

@Vandana Jee, aapse behtar mujhe kaun jaan sakta hai... Dhanywaad aapka !

Saleem Khan ने कहा…

@Heer jee aap bahut dinon baad is nacheez ke blog par aaeen ... bahut achchha laga !

Saleem Khan ने कहा…

@Sanjy jee aap hausla afzaee ka shukriya !

Saleem Khan ने कहा…

@Ayaz Bhai, Anwar bhai ! Shukriya !!

मैं आपकी इस रोचक कथा को पढ़कर काफी ख़ुश हुआ।

"एक बार आरज़ू ने ज़िन्दगी से पूछा- 'मैं कब पूरी होउंगी?' ज़िन्दगी ने जवाब दिया- 'कभी नहीं'। आरज़ू ने घबरा कर फ़िर पूछा- 'क्यूँ?' तो ज़िन्दगी ने जवाब दिया 'अगर तू ही पूरी हो गई तो इंसान जीएगा कैसे!!!???' ये सुन कर आरज़ू मायूस हो गई और अपने आँचल के अन्दर सुबक-सुबक कर रोने लगी।"

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