अपनी मुहब्बत की लाश पे खुद गा के आ गया

अपनी मुहब्बत की लाश पे खुद गा के आ गया
क़ातिल को हिफाज़त-ए-सामान दे के आ गया

रौशनी उसके घर पे जगमगाती रही रात भर
ज़िन्दगी के उजालों को अँधेरा बना के आ गया

ता-उम्र उससे मिलता रहा महफ़िल में यूँ ही
और इंतिहा में मैं तन्हाई ले के आ गया

गर्दे-सफ़र की दास्ताँ कुछ यूँ हुई 'सलीम'
अपने ही घर का रास्ता खुद खो के आ गया

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