आरज़ू पाने के क़ाबिल न रहा अब कोई, सरपरस्त अपना ही सितमगर क्यूँ है !

सबको मालूम है जब अन्जाम-ए-आखिरी
दूसरों के लिए हर शख्स सितमगर क्यूँ है

आरज़ू पाने के क़ाबिल न रहा अब कोई
सरपरस्त अपना ही सितमगर क्यूँ है

मेहनतकश का अन्जाम भी देखा मैंने 
उसके हरियाली भरे खेत बन्जर क्यूँ है

जिसके लिए हाथों को पत्थरों पर तोड़ा
उसी के हाथों में मेरे लिए पत्थर क्यूँ है

जिसके सहारे चल पड़ा अपने घर को छोड़कर
भटका रहा राह से मुझको मेरा रहबर क्यूँ है

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