मेरे मन के उजाले पास में आ, आ देख ले कितना अँधेरा है::: Saleem Khan



मेरे मन के उजाले पास में आ 
आ देख ले कितना अँधेरा है

रातें ही रातें क़िस्मत हैं
और दूर कितना सवेरा है

आबाद ज़माना क्या जाने
मेरे मन में किसका बसेरा है

गर्दिश के जंज़ीरो में घिरकर
नहीं उठता क़दम अब मेरा है

कोई दूसरा उसका बलम भी है
ये देख के रोता दिल मेरा है


1 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

ओह्…………बहुत दर्द भरा है।

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