दर्द उसने दिया मुझे फ़स्ल-ए-बहार में
चैन उसने ले लिया मेरे एक क़रार में
मेरे दम से अब तो ये क़ायनात है
शब्-ओ-माहताब हैं अख्तियार में
जुदाई का मज़ा भी क्या अजीब है
ऐसा मज़ा कहाँ विसाल-ए-यार में
आओ एक बार और आ जाओ
देखें क्या बचा अब हुस्न यार में
जीस्त की स्याह मेरी दास्तान में
कुछ नहीं बचा दिल-ए-दाग़दार में
कैसे गया उलझ 'सलीम' प्यार में
हाथ काँटों में और पाँव अँगार में
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