एहसास अब कुछ रहा ही नहीं: Saleem Khan


कोई शिकवा ना करूँगा लोगों
वो आये या ना आये,
कोई गिला ना करूँगा लोगों
वो आये या ना आये.

 
वक़्त के साथ ये इहलाम हुआ 
अपने वो थे, हैं या पराये.


तनहाइयों में तो चले आते हैं 
उनसे कह दो मेरी महफ़िलों में आ जाएँ.


उनके एहसान से दबा हूँ मैं
एहसानों से अब वो ना दबाये.


ज़िश्त की रौशनी में खो सा गया 
मुझको कोई तलाश कर हाँ लाये.


एहसास अब कुछ रहा ही नहीं 
मुझको कोई हसाए या रुलाये.


गम ए -दौराँ की तल्खियों में ‘सलीम’
एक झलक तो मुझको, आ दिखलाए.

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