दूर तलक गूंजते हैं यहाँ सन्नाटे रात भर
दिन के शोर ओ शराबे में भी होता हूँ मैं तन्हाँ!
दिन के शोर ओ शराबे में भी होता हूँ मैं तन्हाँ!
दिल की आवाज़ भी सुन लो, सुन लो मेरी आरज़ू
कहाँ तलाशूँ तुझे मैं, तुम हो कहाँ, मैं हूँ कहाँ?
कहाँ तलाशूँ तुझे मैं, तुम हो कहाँ, मैं हूँ कहाँ?
2 टिप्पणियाँ:
MashaAllah saleem bhai kya kahne apke .....bahut umda
aapki har shayri mein ek alag andaaj hai... pure blog ko padh gaya.... maja aa gaya...
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