तन्हा मैं ज़िन्दगी बिताऊं कैसे
तेरी याद दिल से मिटा दूँ कैसे
तेरी याद दिल से मिटा दूँ कैसे
कोई आरज़ू नहीं और ज़िन्दगी में
सिर्फ़ यही की तुझे अपना बनाऊं कैसे
तू नहीं हो सकती मेरी ये मैं जानता हूँ
पर दिल-ऐ-नादाँ को ये समझाऊं कैसे
ज़ख्म दे रहे हैं मेरे दिल के तुझे दुआ
तुझे ख़ुशी मिले और मैं न मुस्कुराऊं कैसे
ख़त्म न हो इस दिल की कहानी क़यामत तक
पर तू न हुई मेरी ये मैं सबको बताऊँ कैसे
रह गया प्यासा मैं तेरी मोहब्बत का
इस दिल की प्यास बढ़ गयी है बुझाऊं कैसे
ज़िन्दगी दी खुदा ने और दे दी तेरी आरज़ू
अब इस आरज़ू को मैं दिल से मिटाऊं कैसे
ज़िन्दगी मिली है तो मोहब्बत ही कर लूं
बिन तेरी मोहब्बत के दुनियाँ से चला जाऊँ कैसे
इंतज़ार करूँगा तेर इक़रार का उस जहाँ में भी
मर कर तू ही बता तुझे भूल जाऊं कैसे
9 टिप्पणियाँ:
आपका एक रंग यह भी है, सोचा न था. पहली बार आया हूँ इस ब्लॉग पर. क्या बात है! ग्रेट. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
बहुत खुबसूरत. आपको फ़ोन किया था आपने अटेंड नहीं किया. प्लीज़ कॉल में
श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम
ज़िन्दगी दी खुदा ने और दे दी तेरी आरज़ू
अब इस आरज़ू को मैं दिल से मिटाऊं कैसे
sundar bhaav
शुक्रिया हौसला अफज़ाई का
sundar aur maarmik
ज़ख्म दे रहे हैं मेरे दिल के तुझे दुआ
तुझे ख़ुशी मिले और मैं न मुस्कुराऊं कैसे....
बहुत सुन्दर...
श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम...
शुक्रिया....
kya kahun..........har sher ne dil moh liya............seedhe dil mein utar gaye.
ज़ख्म दे रहे हैं मेरे दिल के तुझे दुआ
तुझे ख़ुशी मिले और मैं न मुस्कुराऊं कैसे
kis kis sher ki tarif karun..........agar ho sake to ye sare sher mujhe mail kar dein.
behtreen .........lajawaab
श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम...
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