तुम क्या जानों मुहब्बत क्या है: Saleem Khan

हवस की ज़ेहनियत रखने वालों
तुम क्या जानों मुहब्बत क्या है

अपने चेहरे पे नक़ाब रखने वालों
तुम क्या जानों मुहब्बत क्या है

इश्क़ की दुनिया आबाद करके
फ़िर किसी को वीरानगी देने वालों
तुम क्या जानों मुहब्बत क्या है

एक वक़्त आएगा ऐसा जब
तड़पोगे तुम भी किसी के लिए
तब जानोगे कि मुहब्बत क्या है

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अलग रहने के बना लिए बहाने...Saleem Khan


दूर जाके मुझसे बना लिए ठिकाने

अलग रहने के बना लिए बहाने

बिछड़ के तुमने बहुत अश्क़ हैं दिए
उन्हीं अश्क़ से हमने बना लिए फ़साने

दौलत पे अपने तुम्हें रश्क है बहुत
हमने मुफ़लिसी को बना लिए ख़जाने

शहनाई बज उठी जब लाश पे 'सलीम'
मैंने उन्ही से अब अपने बना लिए तराने

महलों में रहने वाली तुम खुश रहो सदा
हमने तो खंडहर में अब बना लिए ठिकाने

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हसीनों की ख़ासियत... Saleem Khan


किसी के दिल को आबाद करके
फिर उसे तोड़ कर बर्बाद करना

किसी के बेजान दिल में जान भर कर 
फिर उसे बेईम्तहा बेजान कर देना

किसी तन्हा को पास बुला कर
फिर उसे तन्हा होने की सज़ा देना

किसी की आँखों को ख़्वाब दिखा कर
फिर अश्क के मझधार में छोड़ देना

किसी की रातों को उजाले में तब्दील करके
फिर उसे उम्र भर अँधेरे में धकेल देना

हसीनों की ख़ासियत बन गयी है.

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मेरे मन के उजाले पास में आ, आ देख ले कितना अँधेरा है::: Saleem Khan



मेरे मन के उजाले पास में आ 
आ देख ले कितना अँधेरा है

रातें ही रातें क़िस्मत हैं
और दूर कितना सवेरा है

आबाद ज़माना क्या जाने
मेरे मन में किसका बसेरा है

गर्दिश के जंज़ीरो में घिरकर
नहीं उठता क़दम अब मेरा है

कोई दूसरा उसका बलम भी है
ये देख के रोता दिल मेरा है


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