कौन इसकी परवाह करे


मेरा हबीब है रकीब के जैसा 
कौन मुझे आगाह करे
दिल का मसला ज़ालिम के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

परवाना जल के मर जायेगा 
कौन उसे आगाह करे 
इश्क का मसला मौत के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

मर जायेंगे और मिट जायेंगे 
अश्क-ए-मोहब्बत पी जायेंगे 
अंजाम का मसला ज़हर के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

लहू का क़तर ज़ाया होगा 
उसका ऐब न नुमायाँ होगा 
ऐब का मसला अदा के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

रुख मोड़ना क्या जुर्म नहीं 
दिल तोडना क्या जुर्म नहीं 
जुर्म का मसला इंसाफ के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

अक्स जो उसके चेहरे में उभरा 
चर्चा जो मेरे नाम से गुज़रा 
नाम का मसला 'सलीम' के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

0 टिप्पणियाँ:

जवानी में ये तन्हाई कितना तड़पाती है:: SALEEM


क़ुरबत के वो दिन याद आतें हैं मुझको 
तेरी फुरक़त की आंच जब जलाती है,
तुझमें तो अब कुछ एहसास बचा नहीं
तेरी यादें मुझे अब कितना तड़पाती हैं.

तमन्ना है मरने से पहले देख तो लूं तुझे
आ जाओ अब मेरी मैयत भी जाती है,
कैसे अपने अश्क छुपाऊँ दुनियाँ वालों से
तेरी जुदाई में पल पल मेरी आँख भर आती है.

नाम तक भूल गया है तू जूनून में मेरा
पर धडकनों पे बस तेरी ही साज़ आती है,  
रात जुदाई की जब सर पे आती है 'सलीम'

जवानी में ये तन्हाई कितना तड़पाती है.

0 टिप्पणियाँ:

लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है: Saleem Khan




मेरे दम से ये पूरी क़ायनात है
लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है।

इश्क के सिवा काम क्या बचा
सुकून छिन गया दिल बेताब है।

क़ब्ज़ा-ए-दिल तुझसे जो जुड़ गया
लोग कहने लगे अरे कुछ तो बात है।

तेरी राह पे जबसे मैं चल पड़ा
उसूल की जगह निभाए जज़्बात है।

होश अब कहाँ दिल-ए-बेक़रार में
खुद पे अब कहाँ अख्तियारात है।

खो गया हूँ मैं अपने धुन में ही
अब कहाँ पता दिन या रात है।

0 टिप्पणियाँ:

दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे: SALEEM


दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे
सच कहता हूँ मेरे दोस्त बहुत पछताओगे

किसी को जो जब अपने दिल से लगाओगे

सच कहता हूँ मेरे दोस्त बहुत पछताओगे

जिसके नाम से ज़िन्दा है तुम्हारी दुनियाँ
उसी को तुम अपने से दूर
बहुत पाओगे

मसलके-इश्क़ के झंडाबरदारों को तुम 'सलीम'
अपने मसलक के खुदा से लड़ते बहुत पाओगे

0 टिप्पणियाँ:

एहसास अब कुछ रहा ही नहीं: Saleem Khan


कोई शिकवा ना करूँगा लोगों
वो आये या ना आये,
कोई गिला ना करूँगा लोगों
वो आये या ना आये.

 
वक़्त के साथ ये इहलाम हुआ 
अपने वो थे, हैं या पराये.


तनहाइयों में तो चले आते हैं 
उनसे कह दो मेरी महफ़िलों में आ जाएँ.


उनके एहसान से दबा हूँ मैं
एहसानों से अब वो ना दबाये.


ज़िश्त की रौशनी में खो सा गया 
मुझको कोई तलाश कर हाँ लाये.


एहसास अब कुछ रहा ही नहीं 
मुझको कोई हसाए या रुलाये.


गम ए -दौराँ की तल्खियों में ‘सलीम’
एक झलक तो मुझको, आ दिखलाए.

0 टिप्पणियाँ:

देखें क्या बचा अब हुस्न यार में




दर्द उसने दिया मुझे फ़स्ल-ए-बहार में
चैन उसने ले लिया मेरे एक क़रार में

मेरे दम से अब तो ये क़ायनात है
शब्-ओ-माहताब हैं अख्तियार में

जुदाई का मज़ा भी क्या अजीब है
ऐसा मज़ा कहाँ विसाल-ए-यार में

आओ एक बार और आ जाओ
देखें क्या बचा अब हुस्न यार में

जीस्त की स्याह मेरी दास्तान में 
कुछ नहीं बचा दिल-ए-दाग़दार में

कैसे गया उलझ 'सलीम' प्यार में
हाथ काँटों में और पाँव अँगार में

1 टिप्पणियाँ:

मैं एक अदना सा 'सलीम'

वक़्त बेपरवाह है 
वक़्त के साथ चलो

कोई क़िस्सा न बनो 
खुद में हालात बनो
वक़्त के साथ चलो.

बज़्म में शोर नहीं 
दिल पे कोई ज़ोर नहीं
अपना कोई ठौर नहीं
वक़्त के साथ चलो.

नक़ाब-दर-नक़ाब है वो
फ़िर भी एक ख़्वाब है वो 
जाने कैसा जनाब है वो 
वक़्त के साथ चलो.

इक ज़रा हाथ बढ़ा
दो क़दम साथ बढ़ा
जज़्बे हँसी में न उड़ा
वक़्त के साथ चलो.

आईना टूट गया
साथ जो  छूट गया
मुझसे वो रूठ गया 
वक़्त के साथ चलो.

हाथ में है सिर्फ़ लकीरें 
पढ़ी न गई अपनी ताबीरें
तन्हाईयाँ दिल को चीरें
वक़्त के साथ चलो.

जिसपे भरोसा है किया 
क़त्ल उसने ही किया
पूछे वो ये किसने किया
वक़्त के साथ चलो.

मेरा कौन मुकाम
मेरा कौन मुकीम
तुझे पाने की मुहीम
मैं एक अदना सा 'सलीम'
~~~
Saleem Khan
~~~

4 टिप्पणियाँ:

कौन आता है यहाँ इस दर के लिए::: Saleem KHAN


वक़्त रुकता नहीं पल भर के लिए
कौन आता है यहाँ इस दर के लिए

उसको आया गया
मुझसे बुलाया गया
कौन रखता है भरम इस सर के लिए

आंसुओं और अंधेरों में अब रहता है
जाने क्यूँ दिल उदास अब रहता है
जाने क्यूँ है ख़ला बेख़बर के लिए


मेरी बस्ती में ऐसा सूनापन
उसकी महफ़िल ऐसा हंगामा
इतना फ़र्क़ रिश्ता अन्दर है लिए

इक ज़रा साथ मिले तो कह दूं
कितना उससे मैं प्यार करता हूँ
तरस गया हूँ मैं उस मंज़र के लिए

बेसबब बात यूँ उससे उलझ सी गयी
मुश्तक़बिल की तस्वीर बदल सी गयी
एक बूँद मिली मेरे समंदर के लिए


वक़्त रुकता नहीं पल भर के लिए
कौन आता है यहाँ इस दर के लिए
(Saleem Khan)

4 टिप्पणियाँ:

Blogger Template by Clairvo