जगजीत सिंह जी की एक बेहद सार्थक भरी ग़ज़ल

ज़िंदगी क्या है जानने के लिये
ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है
आज तक कोई भी रहा तो नही

सारी वादी उदास बैठी है
मौसमे गुल ने खुदकशी कर ली
किसने बरुद बोया बागो मे

आओ हम सब पहन ले आइने
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
सारे हसीन लगेंगे यहाँ

है नही जो दिखाई देता है
आइने पर छपा हुआ चेहरा
तर्जुमा आइने का ठीक नही

हम को गलिब ने येह दुआ दी थी
तुम सलामत रहो हज़ार बरस
ये बरस तो फकत दिनो मे गया

लब तेरे मीर ने भी देखे है
पखुड़ी एक गुलाब की सी है
बात सुनते तो गलिब रो जाते

ऐसे बिखरे है रात दिन जैसे
मोतियो वाला हार टूट गया
तुमने मुझको पिरो के रखा था

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जगजीत जी और लता जी का एक रूमानियत भरा नगमा


ग़म का खज़ाना तेरा भी है मेरा भी  
ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी

अपने ग़म को गीत बना कर गा लेना
राग पुराना तेरा भी है मेरा भी

तू मुझ को और मै तुझ को समझाऊं क्या  
दिल दीवाना तेरा भी है मेरा भी  

शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है  
वो अफसाना तेरा भी है मेरा भी  

मयखाने की बात न कर वाईज़ मुझ से  
आना जाना तेरा भी है मेरा भी|

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वो आज भी मेरा माज़ी क्यूँ है?


ज़माना गुज़र चुका है

उन सन्नाटों को गुज़रे हुए

आज भी इन नज़रों में,

उसकी खामोशियाँ क्यूँ है?


उसके शहर, गली को छोड़ चुका

उसकी यादों को दिल से निकाल चुका

मेरे दिल में आज भी

उसी की धड़कने क्यूँ हैं?


ज़िक्र करना छोड़ दिया

उसने गली का रास्ता छोड़ दिया मैंने

फिर भी बेवफा होकर आज भी

वो इतना याद आता क्यूँ है?


कितने दिन और कितनी रातें हो गईं

बिछड़े एक दूजे को

फिर भी वो अजनबी

मेरे दिन और रात में शामिल क्यूँ है?


ख़त्म हो गया मरासिम उससे

जिंदा हैं लेकिन सांसों में

मेरे मौजूदा में

वो आज भी मेरा माज़ी क्यूँ है?
वो आज भी मेरी आरज़ू क्यूँ है....???

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