वो जुदा क्या हुए ज़िन्दगी खो गयी शम्मा जलती रही रोशनी खो गयी: Saleem Khan


वो जब याद आये बहुत याद आये 
ग़म-ए-ज़िन्दगी के अँधेरे में हमने 
चिराग़-ए-मुहब्बत जलाये बुझाये
वो जब याद आये बहुत याद आये 


आहटें जाग उठी रास्ते हँस दिए 
थामकर दिल उठे हम किसी के लिए 
कई बार ऐसा भी धोका हुआ है
चले आ रहें हैं वो नज़रें झुकाए  
वो जब याद आये बहुत याद आये 
ग़म-ए-ज़िन्दगी के अँधेरे में हमने 
चिराग़-ए-मुहब्बत जलाये बुझाये
वो जब याद आये बहुत याद आये 
 

दिल सुलगने लगा अश्क बहने लगे 
जाने क्या क्या हमें लोग कहने लगे 
मगर रोते रोते हँसी आ गयी है
ख्यालों में आ के वो जब मुस्कुराये

वो जब याद आये बहुत याद आये 
ग़म-ए-ज़िन्दगी के अँधेरे में हमने 
चिराग़-ए-मुहब्बत जलाये बुझाये
वो जब याद आये बहुत याद आये 


वो जुदा क्या हुए ज़िन्दगी खो गयी 
शम्मा जलती रही रोशनी खो गयी 
बहुत कोशिशें कि मगर दिल न बहला  
कई साज़ छेड़ें कई गीत गाये 
वो जब याद आये बहुत याद आये

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तेरे सिवा कोई और इन अश्कों के क़ाबिल भी तो नहीं: Saleem Khan



हमें भी आरज़ू थी तेरे संग ज़िन्दगी बिताने की
पर 'आरज़ू', साथ तेरा हमने पाया भी तो नहीं



माना कि ज़िन्दगी में बहुत बहाने हैं, आंसू बहाने के लिए
पर तुने जैसे रुलाया है, पहले किसी ने रुलाया भी तो नहीं


ऐसा नहीं कि तेरे आने से पहले, हम कभी मुस्कुराये न थे
पर तेरे जाने के बाद वैसे किसी ने हंसाया भी तो नहीं


भटकते रहे इस दुनिया में हमसफ़र की तलाश में
पर तुझ जैसा हमसफ़र फिर दोबारा मिला भी तो नहीं


तेरी यादों की शहादत मेरे अश्क देते हैं 'ए आरज़ू'
तेरे सिवा कोई और इन अश्कों के क़ाबिल भी तो नहीं

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