दिखता नहीं है कुछ भी यहाँ, कोई क्या करे: Saleem KHAN


दिखता नहीं है कुछ भी यहाँ, कोई क्या करे
होता नहीं है कुछ भी यहाँ, कोई क्या करे.
टूटा जो सुनहरा सपना, कोई क्या करे
दूर हो गया अपना, कोई क्या करे.

जीस्त सूनी-सूनी थी हर सू जब
दिल में आया नहीं था कोई भी तब
आया वो दुनियाँ में मेरे खुशियाँ लेके
क्यूँ छोड़ गया मुझे तन्हा, कोई क्या करे.

वादे पे वादे किये थे उसने मगर
दिल में इरादे किये थे उसने मगर
क़समें भी खाईं साथ रहने की उम्र भर
क़समें तोड़ के गया चला, कोई क्या करे.

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