कौन इसकी परवाह करे


मेरा हबीब है रकीब के जैसा 
कौन मुझे आगाह करे
दिल का मसला ज़ालिम के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

परवाना जल के मर जायेगा 
कौन उसे आगाह करे 
इश्क का मसला मौत के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

मर जायेंगे और मिट जायेंगे 
अश्क-ए-मोहब्बत पी जायेंगे 
अंजाम का मसला ज़हर के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

लहू का क़तर ज़ाया होगा 
उसका ऐब न नुमायाँ होगा 
ऐब का मसला अदा के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

रुख मोड़ना क्या जुर्म नहीं 
दिल तोडना क्या जुर्म नहीं 
जुर्म का मसला इंसाफ के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

अक्स जो उसके चेहरे में उभरा 
चर्चा जो मेरे नाम से गुज़रा 
नाम का मसला 'सलीम' के जैसा 
कौन इसकी परवाह करे 

जवानी में ये तन्हाई कितना तड़पाती है:: SALEEM


क़ुरबत के वो दिन याद आतें हैं मुझको 
तेरी फुरक़त की आंच जब जलाती है,
तुझमें तो अब कुछ एहसास बचा नहीं
तेरी यादें मुझे अब कितना तड़पाती हैं.

तमन्ना है मरने से पहले देख तो लूं तुझे
आ जाओ अब मेरी मैयत भी जाती है,
कैसे अपने अश्क छुपाऊँ दुनियाँ वालों से
तेरी जुदाई में पल पल मेरी आँख भर आती है.

नाम तक भूल गया है तू जूनून में मेरा
पर धडकनों पे बस तेरी ही साज़ आती है,  
रात जुदाई की जब सर पे आती है 'सलीम'

जवानी में ये तन्हाई कितना तड़पाती है.

लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है: Saleem Khan




मेरे दम से ये पूरी क़ायनात है
लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है।

इश्क के सिवा काम क्या बचा
सुकून छिन गया दिल बेताब है।

क़ब्ज़ा-ए-दिल तुझसे जो जुड़ गया
लोग कहने लगे अरे कुछ तो बात है।

तेरी राह पे जबसे मैं चल पड़ा
उसूल की जगह निभाए जज़्बात है।

होश अब कहाँ दिल-ए-बेक़रार में
खुद पे अब कहाँ अख्तियारात है।

खो गया हूँ मैं अपने धुन में ही
अब कहाँ पता दिन या रात है।

दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे: SALEEM


दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे
सच कहता हूँ मेरे दोस्त बहुत पछताओगे

किसी को जो जब अपने दिल से लगाओगे

सच कहता हूँ मेरे दोस्त बहुत पछताओगे

जिसके नाम से ज़िन्दा है तुम्हारी दुनियाँ
उसी को तुम अपने से दूर
बहुत पाओगे

मसलके-इश्क़ के झंडाबरदारों को तुम 'सलीम'
अपने मसलक के खुदा से लड़ते बहुत पाओगे

एहसास अब कुछ रहा ही नहीं: Saleem Khan


कोई शिकवा ना करूँगा लोगों
वो आये या ना आये,
कोई गिला ना करूँगा लोगों
वो आये या ना आये.

 
वक़्त के साथ ये इहलाम हुआ 
अपने वो थे, हैं या पराये.


तनहाइयों में तो चले आते हैं 
उनसे कह दो मेरी महफ़िलों में आ जाएँ.


उनके एहसान से दबा हूँ मैं
एहसानों से अब वो ना दबाये.


ज़िश्त की रौशनी में खो सा गया 
मुझको कोई तलाश कर हाँ लाये.


एहसास अब कुछ रहा ही नहीं 
मुझको कोई हसाए या रुलाये.


गम ए -दौराँ की तल्खियों में ‘सलीम’
एक झलक तो मुझको, आ दिखलाए.

देखें क्या बचा अब हुस्न यार में




दर्द उसने दिया मुझे फ़स्ल-ए-बहार में
चैन उसने ले लिया मेरे एक क़रार में

मेरे दम से अब तो ये क़ायनात है
शब्-ओ-माहताब हैं अख्तियार में

जुदाई का मज़ा भी क्या अजीब है
ऐसा मज़ा कहाँ विसाल-ए-यार में

आओ एक बार और आ जाओ
देखें क्या बचा अब हुस्न यार में

जीस्त की स्याह मेरी दास्तान में 
कुछ नहीं बचा दिल-ए-दाग़दार में

कैसे गया उलझ 'सलीम' प्यार में
हाथ काँटों में और पाँव अँगार में

मैं एक अदना सा 'सलीम'

वक़्त बेपरवाह है 
वक़्त के साथ चलो

कोई क़िस्सा न बनो 
खुद में हालात बनो
वक़्त के साथ चलो.

बज़्म में शोर नहीं 
दिल पे कोई ज़ोर नहीं
अपना कोई ठौर नहीं
वक़्त के साथ चलो.

नक़ाब-दर-नक़ाब है वो
फ़िर भी एक ख़्वाब है वो 
जाने कैसा जनाब है वो 
वक़्त के साथ चलो.

इक ज़रा हाथ बढ़ा
दो क़दम साथ बढ़ा
जज़्बे हँसी में न उड़ा
वक़्त के साथ चलो.

आईना टूट गया
साथ जो  छूट गया
मुझसे वो रूठ गया 
वक़्त के साथ चलो.

हाथ में है सिर्फ़ लकीरें 
पढ़ी न गई अपनी ताबीरें
तन्हाईयाँ दिल को चीरें
वक़्त के साथ चलो.

जिसपे भरोसा है किया 
क़त्ल उसने ही किया
पूछे वो ये किसने किया
वक़्त के साथ चलो.

मेरा कौन मुकाम
मेरा कौन मुकीम
तुझे पाने की मुहीम
मैं एक अदना सा 'सलीम'
~~~
Saleem Khan
~~~

कौन आता है यहाँ इस दर के लिए::: Saleem KHAN


वक़्त रुकता नहीं पल भर के लिए
कौन आता है यहाँ इस दर के लिए

उसको आया गया
मुझसे बुलाया गया
कौन रखता है भरम इस सर के लिए

आंसुओं और अंधेरों में अब रहता है
जाने क्यूँ दिल उदास अब रहता है
जाने क्यूँ है ख़ला बेख़बर के लिए


मेरी बस्ती में ऐसा सूनापन
उसकी महफ़िल ऐसा हंगामा
इतना फ़र्क़ रिश्ता अन्दर है लिए

इक ज़रा साथ मिले तो कह दूं
कितना उससे मैं प्यार करता हूँ
तरस गया हूँ मैं उस मंज़र के लिए

बेसबब बात यूँ उससे उलझ सी गयी
मुश्तक़बिल की तस्वीर बदल सी गयी
एक बूँद मिली मेरे समंदर के लिए


वक़्त रुकता नहीं पल भर के लिए
कौन आता है यहाँ इस दर के लिए
(Saleem Khan)

दिखता नहीं है कुछ भी यहाँ, कोई क्या करे: Saleem KHAN


दिखता नहीं है कुछ भी यहाँ, कोई क्या करे
होता नहीं है कुछ भी यहाँ, कोई क्या करे.
टूटा जो सुनहरा सपना, कोई क्या करे
दूर हो गया अपना, कोई क्या करे.

जीस्त सूनी-सूनी थी हर सू जब
दिल में आया नहीं था कोई भी तब
आया वो दुनियाँ में मेरे खुशियाँ लेके
क्यूँ छोड़ गया मुझे तन्हा, कोई क्या करे.

वादे पे वादे किये थे उसने मगर
दिल में इरादे किये थे उसने मगर
क़समें भी खाईं साथ रहने की उम्र भर
क़समें तोड़ के गया चला, कोई क्या करे.

हल्की-फ़ुल्की सी तक़रार करो



जब किसी से कभी भी प्यार करो
अपने दिल का तो इज़हार करो
जब किसी से कभी भी....

वक़्त रहता नहीं कभी यकसाँ 
मौक़ा मिलते उनका दीदार करो
जब किसी से कभी भी....

लौट आएगा पुराना वो शमाँ
दिल से ऐसी कुछ पुकार करो
जब किसी से कभी भी....

छुप गया है बादलों में कोई
ऐसे तारे का बस इन्तिज़ार करो
जब किसी से कभी भी....

जब कभी भी किसी से प्यार करो
हल्की-फ़ुल्की सी तक़रार करो
जब किसी से कभी भी....

दुआएं तेरी क्यूँ हो गयीं बेअसर...: Saleem Khan


मंज़िले-जाविदाँ की पा सका न डगर
पूरा होके भी पूरा हो सका न सफ़र

दुआएं तो तुने भी की थी मेरे लिए
दुआएं तेरी भी क्यूँ हो गयीं बेअसर

मुश्किल कुछ भी नहीं इस जहाँ में
साथ तेरा जो मिल जाए मुझे अगर

दिखा जब से मुझे सिर्फ तेरा ही दर
तब से ही भटक रहा हूँ मैं दर ब दर

जब तू समा ही गयी है मेरी नज़र में 
तो अब क्यूँ नहीं आ रही है मुझे नज़र

क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर: Saleem Khan


क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर
क्यूँ फूंक के बैठा हूँ खुद मैं अपना घर

ग़म ज़ेहन में पसरा है तारिक़ी का पहरा है
न रास्ते का है पता अब मैं जाऊं किस डगर

आरज़ू मेरे दिल की क्यूँ तमाम हो गयी
ज़िन्दगी जाएगी किधर नहीं है कुछ ख़बर

अक्स मेरा अब खुद हो गया खिलाफ़ मेरे
चेहरा मेरा खुद क्यूँ नहीं आता है नज़र


तेरा ही सहारा है ऐ खुदा, कर दे मदद
मेरी तरफ़ भी तू कर दे रहम की नज़र

अहले वफ़ा के शहर में क्या हादसा मिला: Saleem Khan

अहले वफ़ा के शहर में क्या हादसा मिला
मुझसे जो शख्स मिला सिर्फ़ बेवफ़ा मिला

मैंने ज़िन्दगी भर उसे अपना हबीब ही समझा
उसको ये क्या हुआ कि वो रक़ीबों से जा मिला

उम्र भर जिसके साथ रहे मोहब्बत की राह में
उसी का पता ज़िन्दगी भर मैं पूछता मिला

दोस्त बन बन के मुझे दर्द देते रहे सभी
अपनों के बीच कुछ ऐसा सिलसिला मिला

मुझको दीवाना समझ वो मुस्कुराते रहे !


हम नशेमन बनाते रहे और वो बिजलियाँ गिराते रहे
अपनी-अपनी फितरत दोनों ज़िन्दगी भर निभाते रहे

समझ न सके वो हमें या हम ही नादान थे
उसूल-ए-राह-ए-इश्क वो मुझे समझाते रहे!

कहा जो मैंने गर कहो तो जाँ दे दूं "आरज़ू"
मुझको दीवाना समझ वो मुस्कुराते रहे !


शिकायत रहेगी हमेशा ता-क़यामत मुझे 
साथ रकीब के वो मेरी क़ब्र पर आते रहे!

तुम क्या जानों मुहब्बत क्या है: Saleem Khan

हवस की ज़ेहनियत रखने वालों
तुम क्या जानों मुहब्बत क्या है

अपने चेहरे पे नक़ाब रखने वालों
तुम क्या जानों मुहब्बत क्या है

इश्क़ की दुनिया आबाद करके
फ़िर किसी को वीरानगी देने वालों
तुम क्या जानों मुहब्बत क्या है

एक वक़्त आएगा ऐसा जब
तड़पोगे तुम भी किसी के लिए
तब जानोगे कि मुहब्बत क्या है

अलग रहने के बना लिए बहाने...Saleem Khan


दूर जाके मुझसे बना लिए ठिकाने

अलग रहने के बना लिए बहाने

बिछड़ के तुमने बहुत अश्क़ हैं दिए
उन्हीं अश्क़ से हमने बना लिए फ़साने

दौलत पे अपने तुम्हें रश्क है बहुत
हमने मुफ़लिसी को बना लिए ख़जाने

शहनाई बज उठी जब लाश पे 'सलीम'
मैंने उन्ही से अब अपने बना लिए तराने

महलों में रहने वाली तुम खुश रहो सदा
हमने तो खंडहर में अब बना लिए ठिकाने

हसीनों की ख़ासियत... Saleem Khan


किसी के दिल को आबाद करके
फिर उसे तोड़ कर बर्बाद करना

किसी के बेजान दिल में जान भर कर 
फिर उसे बेईम्तहा बेजान कर देना

किसी तन्हा को पास बुला कर
फिर उसे तन्हा होने की सज़ा देना

किसी की आँखों को ख़्वाब दिखा कर
फिर अश्क के मझधार में छोड़ देना

किसी की रातों को उजाले में तब्दील करके
फिर उसे उम्र भर अँधेरे में धकेल देना

हसीनों की ख़ासियत बन गयी है.

मेरे मन के उजाले पास में आ, आ देख ले कितना अँधेरा है::: Saleem Khan



मेरे मन के उजाले पास में आ 
आ देख ले कितना अँधेरा है

रातें ही रातें क़िस्मत हैं
और दूर कितना सवेरा है

आबाद ज़माना क्या जाने
मेरे मन में किसका बसेरा है

गर्दिश के जंज़ीरो में घिरकर
नहीं उठता क़दम अब मेरा है

कोई दूसरा उसका बलम भी है
ये देख के रोता दिल मेरा है


आशियाना मुझे एक मयस्सर न हो सका: ऐ खुदा तुने ये जहाँ किस तरह बनाया है !


ये कैसा हादसा हमें पेश आया हैं
सिर पे सलीब रोज़ हमने उठाया है

जब चिराग़-ओ-शम्स मयस्सर न हुआ
अपने दिल को रौशनी के लिए जलाया हैं

आशियाना मुझे एक मयस्सर न हो सका
ऐ खुदा तुने ये जहाँ किस तरह बनाया है

मैं क्या करूँगा ज़माने की ख्वाहिशें
जबसे तुने मुझको रोना सिखाया है 
  
तेरे ही बदौलत सही मुझे ये नसीब है
सरे-ज़माना मैंने अब सर कटाया है
  
किस्मत की दास्ताँ कुछ इस तरह हुई
ग़म-ख्वार ने ही 'सलीम' हर ग़म बढाया है

अल्लाह रसूल का फ़रमान इश्क़ है, याने हदीस इश्क़ है, कुरआन इश्क़ है! A greatest Film Song


ना तो कारवाँ की तलाश है, ना तो हमसफ़र की तलाश है
मेरे शौक़-ए-खाना खराब को, तेरी रहगुज़र की तलाश है

मेरे नामुराद जुनून का है इलाज कोई तो मौत है
जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है

तेरा इश्क़ है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क़ है मेरी आबरू
दिल इश्क़ जिस्म इश्क़ है और जान इश्क़ है
ईमान की जो पूछो तो ईमान इश्क़ है
तेरा इश्क़ है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क़ है मेरी आबरू,
तेरा इश्क़ मैं कैसे छोड़ दूँ, मेरी उम्र भर की तलाश है

ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़,ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

जाँसोज़ की हालत को जाँसोज़ ही समझेगा
मैं शमा से कहता हूँ महफ़िल से नहीं कहता क्योंकि
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़,ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

सहर तक सबका है अंजाम जल कर खाक हो जाना,
भरी महफ़िल में कोई शम्मा या परवाना हो जाए क्योंकि
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़,  ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

वहशत-ए-दिल रस्म-ओ-दीदार से रोकी ना गई
किसी खंजर, किसी तलवार से रोकी ना गई
इश्क़ मजनू की वो आवाज़ है जिसके आगे
कोई लैला किसी दीवार से रोकी ना गई, क्योंकि
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़,ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

वो हँसके अगर माँगें तो हम जान भी देदें,
हाँ ये जान तो क्या चीज़ है ईमान भी देदें क्योंकि
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़,  ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

नाज़-ओ-अंदाज़ से कहते हैं कि जीना होगा,
ज़हर भी देते हैं तो कहते हैं कि पीना होगा
जब मैं पीता हूँ तो कहतें है कि मरता भी नहीं,
जब मैं मरता हूँ तो कहते हैं कि जीना होगा
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़,ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

मज़हब-ए-इश्क़ की हर रस्म कड़ी होती है,
हर कदम पर कोई दीवार खड़ी होती है
इश्क़ आज़ाद है, हिंदू ना मुसलमान है इश्क़,
आप ही धमर् है और आप ही ईमान है इश्क़
जिससे आगाह नही शेख-ओ-बरहामन दोनो,
उस हक़ीक़त का गरजता हुआ ऐलान है इश्क़

राह उल्फ़त की कठिन है इसे आसाँ ना समझ
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़,  ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

बहुत कठिन है डगर पनघट की
अब क्या भर लाऊँ मै जमुना से मटकी
मै जो चली जल जमुना भरन को
देखो सखी जी मै जो चली जल जमुना भरन को
नंदकिशोर मोहे रोके झाड़ों तो
क्या भर लाऊँ मै जमुना से मटकी
अब लाज राखो मोरे घूँघट पट की

जब जब कृष्ण की बंसी बाजी, निकली राधा सज के
जान अजान का मान भुला के, लोक लाज को तज के
जनक दुलारी बन बन डोली, पहन के प्रेम की माला
दशर्न जल की प्यासी मीरा पी गई विष का प्याला
और फिर अरज करी के
लाज राखो राखो राखो, लाज राखो देखो देखो, 
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़,ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

अल्लाह रसूल का फ़रमान इश्क़ है
याने हदीस इश्क़ है, कुरआन इश्क़ है
गौतम का और मसीह का अरमान इश्क़ है
ये कायनात जिस्म है और जान इश्क़ है
इश्क़ सरमद, इश्क़ ही मंसूर है
इश्क़ मूसा, इश्क़ कोह-ए-नूर है
ख़ाक़ को बुत, और बुत को देवता करता है इश्क़
इन्तहा ये है के बंदे को ख़ुदा करता है इश्क़

हाँ इश्क़ इश्क़ तेरा इश्क़ इश्क़, तेरा इश्क़ इश्क़, इश्क़ इश्क़ ...

ऐसा हरगिज़ न होता जो जीने के उसूल होते, एक हाथ से देते तो दुसरे से ज़रूर वसूल होते

लफ़्ज़ों की बौछारों से आँखें भीगने लगती हैं
बिन मौसम गालों को आँखें सींचने लगती हैं
उनकी बात सुनते ही दिल तार-तार होता है
कैसे रोकूँ इसको मैं दिल ज़ार-ज़ार रोता है
जिनकी उम्मीदों पर है ज़िन्दगी भर का सफ़र
क्यूँ वही छोड़ कर जा रहा है बदल कर डगर
इश्क़ का सबक़ भी तो मुझे उसी ने सिखाया
उम्र जिसके नाम लिख दी फ़िर उसी ने रुलाया
ऐसा हरगिज़ न होता जो जीने के उसूल होते
एक हाथ से देते तो दुसरे से ज़रूर वसूल होते
इन्सान को पता है जब अन्जाम आखिरी अपना
क्यूँ वो अपने हांथो बर्बाद कर रहा है मेरा सपना
ख़ता भी कुछ बता देता तो तसल्ली होती मुझे
कम से कम तवज्जोह से तसल्ली होती मुझे

याद तो आता हूँ ना !


कभी अगर शाम हो और तन्हाई का आलम हो,
सन्नाटे में चीरता हुआ एक एहसास दिल को तेरे,
मेरी याद तो दिलाता होगा तुम्हें 'आरज़ू' |

सुबह सुबह जब खामोशी से नींद खुलती होगी,
फ़िर आँख खुलते ही मुझे नज़दीक न पाना,
मेरी याद तो दिलाता होगा तुम्हें 'आरज़ू' |

बर्बाद मोहब्बत का मेरा ये कलाम ले लो


आख़िरी बार अब मेरा ये सलाम ले लो
फ़िर न लौटूंगा अब मेरा ये सलाम ले लो

तुम अचानक चले गए ज़िन्दगी से मेरी 
बर्बाद मोहब्बत का मेरा ये कलाम ले लो

वक़्त की गर्दिश में खो गया वो लम्हा
तुम उसी लम्हे का मेरा ये पयाम ले लो

तुम नहीं हो पर लगता है तुम ही तुम हो
शब्-ए-तनहाई का मेरा ये अन्जाम ले लो

तर्क कर दिया सबने मुझसे रिश्ता, क्यूंकि मेरी जेब में अब पैसा ही नहीं



मिली क्यूँ सज़ा जब ख़ता ही नहीं
मेरा क्या जुर्म है मुझे पता ही नहीं

हक़ पे रहने की सज़ा मिली होगी
बातिल होने की कोई सज़ा ही नहीं

दम घुटने लगा गुलिस्ताँ में क्यूँ
लगता है इसमें अब सबा ही नहीं

तर्क कर दिया सबने मुझसे रिश्ता
क्यूंकि मेरी जेब में अब पैसा ही नहीं

तस्वीर दिखती नहीं है मेरी क्यूँ
मेरे आईने में मेरा चेहरा ही नहीं
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