क़ातिल ही निकल गया जब मुंसिफ़ मेरा... Saleem Khan

ख़ूबसूरत सी ख़ता हो न सकी
मुहब्बत की सज़ा हो न सकी

उम्र भर साथ रहे उसके कुछ इस तरह
उसकी मुझसे ता-उम्र निबाह हो न सकी

क़ातिल ही निकल गया जब मुंसिफ़ मेरा
तकाज़ा-ए-इन्साफ़ की सदा हो न सकी

बुनियाद-ए-इश्क़ की फितरत तो देखो 'आरज़ू'
मर गयीं हसरतें और फ़िर ज़िन्दा हो न सकीं

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