दुआएं तेरी क्यूँ हो गयीं बेअसर...: Saleem Khan


मंज़िले-जाविदाँ की पा सका न डगर
पूरा होके भी पूरा हो सका न सफ़र

दुआएं तो तुने भी की थी मेरे लिए
दुआएं तेरी भी क्यूँ हो गयीं बेअसर

मुश्किल कुछ भी नहीं इस जहाँ में
साथ तेरा जो मिल जाए मुझे अगर

दिखा जब से मुझे सिर्फ तेरा ही दर
तब से ही भटक रहा हूँ मैं दर ब दर

जब तू समा ही गयी है मेरी नज़र में 
तो अब क्यूँ नहीं आ रही है मुझे नज़र

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क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर: Saleem Khan


क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर
क्यूँ फूंक के बैठा हूँ खुद मैं अपना घर

ग़म ज़ेहन में पसरा है तारिक़ी का पहरा है
न रास्ते का है पता अब मैं जाऊं किस डगर

आरज़ू मेरे दिल की क्यूँ तमाम हो गयी
ज़िन्दगी जाएगी किधर नहीं है कुछ ख़बर

अक्स मेरा अब खुद हो गया खिलाफ़ मेरे
चेहरा मेरा खुद क्यूँ नहीं आता है नज़र


तेरा ही सहारा है ऐ खुदा, कर दे मदद
मेरी तरफ़ भी तू कर दे रहम की नज़र

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अहले वफ़ा के शहर में क्या हादसा मिला: Saleem Khan

अहले वफ़ा के शहर में क्या हादसा मिला
मुझसे जो शख्स मिला सिर्फ़ बेवफ़ा मिला

मैंने ज़िन्दगी भर उसे अपना हबीब ही समझा
उसको ये क्या हुआ कि वो रक़ीबों से जा मिला

उम्र भर जिसके साथ रहे मोहब्बत की राह में
उसी का पता ज़िन्दगी भर मैं पूछता मिला

दोस्त बन बन के मुझे दर्द देते रहे सभी
अपनों के बीच कुछ ऐसा सिलसिला मिला

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मुझको दीवाना समझ वो मुस्कुराते रहे !


हम नशेमन बनाते रहे और वो बिजलियाँ गिराते रहे
अपनी-अपनी फितरत दोनों ज़िन्दगी भर निभाते रहे

समझ न सके वो हमें या हम ही नादान थे
उसूल-ए-राह-ए-इश्क वो मुझे समझाते रहे!

कहा जो मैंने गर कहो तो जाँ दे दूं "आरज़ू"
मुझको दीवाना समझ वो मुस्कुराते रहे !


शिकायत रहेगी हमेशा ता-क़यामत मुझे 
साथ रकीब के वो मेरी क़ब्र पर आते रहे!

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