लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है: Saleem Khan




मेरे दम से ये पूरी क़ायनात है
लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है।

इश्क के सिवा काम क्या बचा
सुकून छिन गया दिल बेताब है।

क़ब्ज़ा-ए-दिल तुझसे जो जुड़ गया
लोग कहने लगे अरे कुछ तो बात है।

तेरी राह पे जबसे मैं चल पड़ा
उसूल की जगह निभाए जज़्बात है।

होश अब कहाँ दिल-ए-बेक़रार में
खुद पे अब कहाँ अख्तियारात है।

खो गया हूँ मैं अपने धुन में ही
अब कहाँ पता दिन या रात है।

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दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे: SALEEM


दरिया-ए-मोहब्बत में जो कश्ती को उतारोगे
सच कहता हूँ मेरे दोस्त बहुत पछताओगे

किसी को जो जब अपने दिल से लगाओगे

सच कहता हूँ मेरे दोस्त बहुत पछताओगे

जिसके नाम से ज़िन्दा है तुम्हारी दुनियाँ
उसी को तुम अपने से दूर
बहुत पाओगे

मसलके-इश्क़ के झंडाबरदारों को तुम 'सलीम'
अपने मसलक के खुदा से लड़ते बहुत पाओगे

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एहसास अब कुछ रहा ही नहीं: Saleem Khan


कोई शिकवा ना करूँगा लोगों
वो आये या ना आये,
कोई गिला ना करूँगा लोगों
वो आये या ना आये.

 
वक़्त के साथ ये इहलाम हुआ 
अपने वो थे, हैं या पराये.


तनहाइयों में तो चले आते हैं 
उनसे कह दो मेरी महफ़िलों में आ जाएँ.


उनके एहसान से दबा हूँ मैं
एहसानों से अब वो ना दबाये.


ज़िश्त की रौशनी में खो सा गया 
मुझको कोई तलाश कर हाँ लाये.


एहसास अब कुछ रहा ही नहीं 
मुझको कोई हसाए या रुलाये.


गम ए -दौराँ की तल्खियों में ‘सलीम’
एक झलक तो मुझको, आ दिखलाए.

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