सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक बार आरज़ू ने ज़िन्दगी से पूछा- 'मैं कब पूरी होउंगी?' ज़िन्दगी ने जवाब दिया- 'कभी नहीं'। आरज़ू ने घबरा कर फ़िर पूछा- 'क्यूँ?' तो ज़िन्दगी ने जवाब दिया 'अगर तू ही पूरी हो गई तो इंसान जीएगा कैसे!!!???' ये सुन कर आरज़ू मायूस हो गई और अपने आँचल के अन्दर सुबक-सुबक कर रोने लगी। - सलीम खान 1999
Some Information
Founder of-
(World's First Islamic Community blog in Hindi)
All India Bloggers' Association
ऑल इन्डिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन
www.allindiabloggersassociation.blogspot.in
www.allindiabloggersassociation.blogspot.in
(A Non-Profit Organisation for Indian Bloggers)
Lucknow Bloggers' Association
लखनऊ ब्लॉगर्स एसोसियेशन
Creative Head of-
Swachchh Sandesh
स्वच्छ सन्देश
www.swachchhsandesh.blogspot.com
(Islamic cum Social Weblog of Saleem Khan)
Vigyan Ki Aawaz
विज्ञान की आवाज़
www.svachchhsandesh.blogspot.com
www.svachchhsandesh.blogspot.com
(Articles on Science by Saleem Khan)
Contact me at swachchhsandesh@gmail.com
एक बार आरज़ू ने ज़िन्दगी से पूछा- 'मैं कब पूरी होउंगी?' ज़िन्दगी ने जवाब दिया- 'कभी नहीं'। आरज़ू ने घबरा कर फ़िर पूछा- 'क्यूँ?' तो ज़िन्दगी ने जवाब दिया 'अगर तू ही पूरी हो गई तो इंसान जीएगा कैसे!!!???' ये सुन कर आरज़ू मायूस हो गई और अपने आँचल के अन्दर सुबक-सुबक कर रोने लगी।
Linkbar
लोकप्रिय पोस्ट
-
जब किसी से कभी भी प्यार करो अपने दिल का तो इज़हार करो जब किसी से कभी भी.... वक़्त रहता नहीं कभी यकसाँ मौक़ा मिलते उनका दीदार करो जब किसी...
-
मेरा हबीब है रकीब के जैसा कौन मुझे आगाह करे दिल का मसला ज़ालिम के जैसा कौन इसकी परवाह करे परवाना जल के मर जायेगा कौन ...
-
ये कैसा हादसा हमें पेश आया हैं सिर पे सलीब रोज़ हमने उठाया है जब चिराग़-ओ-शम्स मयस्सर न हुआ अपने दिल को रौशनी के लिए जलाया हैं आशियाना मु...
-
वक़्त बेपरवाह है वक़्त के साथ चलो कोई क़िस्सा न बनो खुद में हालात बनो वक़्त के साथ चलो. बज़्म में शोर नहीं दिल पे कोई ज़ोर नहीं अपना को...
-
कुछ फूल भी ज़ख्म दे देते हैं यक़ीन मानों मेरा दिल ज़ख़्मी हो सिर्फ़ ख़ार से ज़रूरी तो नहीं चाही जो मैंने थोड़ी सी ख़ुशी ज़िन्दगी...
-
तुम चली गयीं तो जैसे रौशनी चली गयी ज़िन्दा होते हुए भी जैसे ज़िन्दगी चली गयी मैं उदास हूँ यहाँ और ग़मज़दा हो तुम वहाँ ग़मों की तल्खियों मे...
-
दिखता नहीं है कुछ भी यहाँ, कोई क्या करे होता नहीं है कुछ भी यहाँ, कोई क्या करे. टूटा जो सुनहरा सपना, कोई क्या करे दूर हो गया अपना, कोई क्या...
-
हम नशेमन बनाते रहे और वो बिजलियाँ गिराते रहे अपनी-अपनी फितरत दोनों ज़िन्दगी भर निभाते रहे समझ न सके वो हमें या हम ही नादान थे उसूल-ए-राह-ए...
-
मेरे दम से ये पूरी क़ायनात है लेकिन तेरे दम से मेरी ज़ात है। इश्क के सिवा काम क्या बचा सुकून छिन गया दिल बेताब है। ...
-
मंज़िले-जाविदाँ की पा सका न डगर पूरा होके भी पूरा हो सका न सफ़र दुआएं तो तुने भी की थी मेरे लिए दुआएं तेरी भी क्यूँ हो गयीं बेअसर मुश्क...
सलीम खान 1999
मेरे बारे में
फ़ॉलोअर
- आरज़ू (3)
- आशा (1)
- इन्तिज़ार (1)
- किराये की ज़िन्दगी (1)
- कोई क्या करे (1)
- ज़िन्दगी (4)
- ज़िन्दगी की आरज़ू (6)
- तक़रार (1)
- तन्हाई (1)
- धीरे-धीरे (1)
- निदा फाज़ली (1)
- परवाह (1)
- बेवफ़ा सबीहा (41)
- मुझे पसंद है (2)
- मुहब्बत क्या है (1)
- मेरी ज़ात (1)
- मैं एक अदना सा 'सलीम' (1)
- यादों की कसक (4)
- वक़्त (1)
- शिकवा (1)
- शिकायत (1)
- समझ लेता हूँ कि वो तुम हो (1)
- हसीनों की ख़ासियत (1)
- bewafa (1)
- Inspiration GHAZAL (1)
- LOVE AGAIN (1)
यह ब्लॉग खोजें
Only you can change your life, No-one can do this for you.
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें