क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर: Saleem Khan


क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर
क्यूँ फूंक के बैठा हूँ खुद मैं अपना घर

ग़म ज़ेहन में पसरा है तारिक़ी का पहरा है
न रास्ते का है पता अब मैं जाऊं किस डगर

आरज़ू मेरे दिल की क्यूँ तमाम हो गयी
ज़िन्दगी जाएगी किधर नहीं है कुछ ख़बर

अक्स मेरा अब खुद हो गया खिलाफ़ मेरे
चेहरा मेरा खुद क्यूँ नहीं आता है नज़र


तेरा ही सहारा है ऐ खुदा, कर दे मदद
मेरी तरफ़ भी तू कर दे रहम की नज़र

2 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर गज़ल्।

kshama ने कहा…

क्या मैं हूँ कमज़ोर या फिर हूँ ताक़तवर
क्यूँ फूंक के बैठा हूँ खुद मैं अपना घर

ग़म ज़ेहन में पसरा है तारिक़ी का पहरा है
न रास्ते का है पता अब मैं जाऊं किस डगर

Kya gazab ke alfaaz hain!

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