
जो तुम ना थे मेरे सनम
तो क्या थी ये ज़िन्दगी
कुछ भी नहीं
जो तुम नहीं हो, मेरे सनम
तो क्या है ये ज़िन्दगी
कुछ भी नहीं
बंदगी की हद से ज़्यादा तेरा सुरूर था
कैसे बताऊँ मैं तुझको तू मेरा गुरुर था
शाम से सुबह तक बस तेरी तलाश है
तेरे बिना ज़िन्दगी मेरी जिंदा लाश है
तू नही तो ज़िन्दगी कैसी उदास है
बुझती नही है ये भी कैसी प्यास है
अक़्स-ऐ- आरज़ू लिए फिरते रहेंगे हम
पल-पल तेरी याद में मरते रहेंगे हम
मरासिम मुस्तकिल न सही, मिजाजे-आशिक़ी रहे
नगमा नहीं साज़ नही न सही तेरी मौसिक़ि रहे
जो तुम ना थे मेरे सनम
तो क्या थी ये ज़िन्दगी
कुछ भी नहीं
जो तुम नहीं हो, मेरे सनम
तो क्या है ये ज़िन्दगी
कुछ भी नहीं
2 टिप्पणियाँ:
बंदगी की हद से ज़्यादा तेरा सुरूर था
कैसे बताऊँ मैं तुझको तू मेरा गुरुर था
शाम से सुबह तक बस तेरी तलाश है
तेरे बिना ज़िन्दगी मेरी जिंदा लाश है
बहुत ही खूबसूरत शेर है
उम्दा लिखा है, ये दोनों शेर तो खास अच्छे लगे
आपके अल्फाज़ तो अल्फाज़... इस तसवीर ने आँसू छलका दिए ...
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