फूल तो देखे बहुत मैंने, फूलों का हार न देख सका.












फूल तो देखे बहुत मैंने
फूलों का हार न देख सका
अपने तो देखे बहुत मैंने
अपनों का प्यार न देख सका

दुनियाँ को देखा बहुत मैंने
घर-संसार न देख सका
दोस्त तो देखे बहुत मैंने
कोई वफ़ादार न देख सका

महफ़िल तो देखी बहुत मैंने
उसका दरबार न देख सका
आशिक़ तो देखे बहुत मैंने 
उस जैसा बीमार न देख सका

भीड़ तो देखी बहुत मैंने 
अपना कोई यार न देख सका
रिश्ते तो देखे बहुत मैंने 
अपना परिवार न देख सका

4 टिप्पणियाँ:

फूल तो देखे बहुत मैंने
फूलों का हार न देख सका
अपने तो देखे बहुत मैंने
अपनों का प्यार न देख सका

इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

महफ़िल तो देखी बहुत मैंने

उसका दरबार न देख सका

आशिक़ तो देखे बहुत मैंने
उस जैसा बीमार न देख सका
खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास.............बहुत सुन्दर..

Saleem Khan ने कहा…

thanks sanjay

vandana gupta ने कहा…

ये पढकर बडा पुराना ये गाना याद आ गया
मैने माँ को देखा है
माँ का प्यार नही देखा
मैने फूल तो देखे हैं
फूलों का हार नही देखा

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