समाया है मेरे मन में तुम्हारा ही वजूद
हर वक़्त सोचता हूँ तेरा क्या हूँ मैं?
किस अंदाज़ में लिया होगा तुने मेरा नाम
क्या तू भी सोचती है कि तेरा क्या हूँ मैं?
हर्फे-ग़लत को न तौलो मेरी वफ़ा के साथ
सुन लो सनम, बेवफ़ा नहीं बावफ़ा हूँ मैं
सबक़ ले लो इश्क़ का मुझसे मेरे हबीब
कुछ साल उम्र में तो तुझसे बड़ा हूँ मैं
तड़प की राह अभी तुने पकड़ी ही कहाँ
आगे क़दम बढ़ा ज़रा, आगे खड़ा हूँ मैं
4 टिप्पणियाँ:
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
वाह बेहद खूबसूरत!
प्रेमरस.कॉम
तड़प की राह अभी तुने पकड़ी ही कहाँ
आगे क़दम बढ़ा ज़रा, आगे खड़ा हूँ मैं
बेहतरीन...
खूबसूरत गज़ल ..
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