क्यूँ उसके सामने बेबस हो जाते हैं हम



कैसे करें इज़हारे मुहब्बत उनसे हम
हर वक़्त यही सोचते रहते है हम

मन में उमंग इतनी कि छू लूं आसमाँ
क्यूँ उसके सामने बेबस हो जाते हैं हम

उसकी नज़र-अन्दाज़गी से परेशां रहता हूँ
ऐसे तो मुहब्बत और भड़केगी मेरे सनम
 
उसे मुहब्बत करता हूँ, उसे नहीं है ख़बर
और कुछ नहीं अब बस एक यही है ग़म

वक़्त अभी है कल हो न हो, हम रहे न रहे
इज़हारे मुहब्बत में देर न हो जाये सनम

क्या तुमको कभी ये एहसास नहीं होता
तुम्हारी याद में तिल तिल मर रहे हैं हम

अब आ भी जाओ मेरी ज़िन्दगी बन कर
न तड़पाओ 'आरज़ू' है तुमको मेरी क़सम

3 टिप्पणियाँ:

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

औरत की बदहाली और उसके तमाम कारणों को बयान करने के लिए एक टिप्पणी तो क्या, पूरा एक लेख भी नाकाफ़ी है। उसमें केवल सूक्ष्म संकेत ही आ पाते हैं। ये दोनों टिप्पणियां भी समस्या के दो अलग कोण पाठक के सामने रखती हैं।
मैं बहन रेखा जी की टिप्पणी से सहमत हूं और मुझे उम्मीद है वे भी मेरे लेख की भावना और सुझाव से सहमत होंगी और उनके जैसी मेरी दूसरी बहनें भी।
औरत सरापा मुहब्बत है। वह सबको मुहब्बत देती है और बदले में भी फ़क़त वही चाहती है जो कि वह देती है। क्या मर्द औरत को वह तक भी लौटाने में असमर्थ है जो कि वह औरत से हमेशा पाता आया है और भरपूर पाता आया है ?

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

Nice post .

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन...बहुत खूब!

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