मेरा क्या जुर्म है मुझे पता ही नहीं
हक़ पे रहने की सज़ा मिली होगी
बातिल होने की कोई सज़ा ही नहीं
दम घुटने लगा गुलिस्ताँ में क्यूँ
लगता है इसमें अब सबा ही नहीं
तर्क कर दिया सबने मुझसे रिश्ता
क्यूंकि मेरी जेब में अब पैसा ही नहीं
तस्वीर दिखती नहीं है मेरी क्यूँ
मेरे आईने में मेरा चेहरा ही नहीं
1 टिप्पणियाँ:
तस्वीर दिखती नहीं है मेरी क्यूँ
मेरे आईने में मेरा चेहरा ही नहीं
यही तो दुख है और यही आज का सच है …………आईने मे "मै" ही नही मिलता।
एक टिप्पणी भेजें