मैं न हिन्दू न मुसलमान, मुझे जीने दो
दोस्ती है मेरा ईमान, मुझे जीने दो
कोई एहसाँ न करो मुझपे तो एहसान होगा
सिर्फ इतना करो एहसान, मुझे जीने दो
सबके दुःख दर्द को बस अपना समझ के जीना
बस यही है मेरा अरमान, मुझे जीने दो
लोग होते हैं हैरान मेरे जीने से
लोग होते रहे हैरान, मुझे जीने दो
जगजीत साहब द्वारा गाई गई एक बेहद खूबसुरत नज़्म
4 टिप्पणियाँ:
Bahut sundar nazm!
सलीम भाई,
बहुत प्यारी सी नज्म है और आज के हालत में ऐसी हो सोच होनी भी चाहिए. हमें इंसान को सिर्फ इंसान समझना चाहिए न हिन्दू और न मुस्लमान. बस उनसे रहें सावधान जो हमारे बीच हैवान छिपे हैं.
एक अच्छी पोस्ट..यह तस्वीर जब भी देखता हूँ बहुत तकलीफ होती है. एक इंसान अपने जैसे इंसान के सामने....जाने दो भाई
nice
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