खुशियाँ अब बन गयी हैं बरबादियाँ हमारी
सलाहियत अब बन गयीं है दुश्वारियां हमारी
वक़्त की गर्दिश में हैं अब मुश्ताक्बिल हमारा
हिम्मत अब बन गयी है लाचारियाँ हमारी
दर-ब-दर भटक रहे हैं मंजिल की तलाश में
क़दमों को अब रोकती हैं परेशानियाँ हमारी
शोलों में मुब्तिला है दुनियाँ का हर बशर
दहशत में अब तब्दील है चिंगारियाँ हमारी
काग़ज़ के आशियाँ से है रिहाईश का वास्ता
खुद अपने घर में हो रही है बरबादियाँ हमारी
माहौल की बर्बादी अब ले जाए कहाँ हमको
मर-मर के जिंदा हो रही है सिसकियाँ हमारी
हर शख्स ने चुन लिया अपना ही रास्ता
सफ़र में गुम हो रही है सवारियाँ हमारी
क़तरों की बिसात कुछ कम नहीं 'सलीम'
लफ़्ज़ों में गुम हो रही हैं शायरियां हमारी
7 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर अशरार …………शानदार गज़ल्।
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
बहुत उम्दा शेर निकाले हैं, दाद कबूल करो.
यह अंदाज़ भी पसंद आया
Behtreen... bahut khoob!
दर-ब-दर भटक रहे हैं मंजिल की तलाश में
क़दमों को अब रोकती हैं परेशानियाँ हमारी
Bahut khoob!
Waise,sabhee ashaar khoobsoorat hain!
nice
एक टिप्पणी भेजें