अल्लाह ही जाने अब क्या होगा मेरा
डरा-सा सहमा-सा रहता है दिल मेरा
कभी हँसता हूँ तो कभी रोता हूँ यूँ ही
अजीब ग़फलत में रहता है दिल मेरा
क़िस्मत का निज़ाम कुछ तरह वाबस्ता है
क़रीब आते ही खो जाता है साहिल मेरा
करने जाता हूँ जब कुछ भी अच्छा
जाने क्यूँ बुरा हो जाता है फ़िर मेरा
निकलता हूँ जाने के लिए जब महलों में 'सलीम'
हो जाता है क्यूँ जल्लाद के क़दमों में सिर मेरा
3 टिप्पणियाँ:
करने जाता हूँ जब कुछ भी अच्छा
जाने क्यूँ बुरा हो जाता है फ़िर मेरा
aisa kya?
nice post
Nice kalaam .
एक टिप्पणी भेजें