अपना कहते-कहते क्यूँ, बीच सफ़र में लूट गया ?
ज़िन्दगी भर साथ निभाने का वादा करके
अब क्यूँ मुझसे वो, पल भर में रूठ गया ?
दुनियाँ भर की सैर कराके मेरा हमसफ़र
मंज़िल से पहले अपने ही शहर में छूट गया !
क़िस्मत क्या ऐसी भी होगी, मालूम न था
साहिल से पहले पतवार समंदर में छूट गया !
दिल तक पहुँचते-पहुँचते महबूब का प्यार
क्यूँ ज़ख्म बन कर जिगर में फ़ूट गया ?
आँखों के तीर ठीक निशाने पर लगाकर 'सलीम'
क्यूँ दिल पर निशाना, एक नज़र में चूक गया ?
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दीपावली की दिली मुबारक़बाद आप सभी ब्लॉगर्स और पाठक बन्धुवों को !
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दीपावली की दिली मुबारक़बाद आप सभी ब्लॉगर्स और पाठक बन्धुवों को !
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10 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...
अच्छी रचना
Nice post .
ओह! आज की रचना तो बेहद दर्द भरी है………………एक से बढ्कर एक है हर पंक्ति।
शाख़-ए-आशियाँ छूट गया, एक 'परिंदा' टूट गया
अपना कहते-कहते क्यूँ, बीच सफ़र में लूट गया ?
सलीम जी क्या बात हुई ....?
ये दिल के टुकडे टुकडे कर कौन चला गया .....>
अच्छी नज़्म ....!!
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@Vandana Jee, aapse behtar mujhe kaun jaan sakta hai... Dhanywaad aapka !
@Heer jee aap bahut dinon baad is nacheez ke blog par aaeen ... bahut achchha laga !
@Sanjy jee aap hausla afzaee ka shukriya !
@Ayaz Bhai, Anwar bhai ! Shukriya !!
मैं आपकी इस रोचक कथा को पढ़कर काफी ख़ुश हुआ।
"एक बार आरज़ू ने ज़िन्दगी से पूछा- 'मैं कब पूरी होउंगी?' ज़िन्दगी ने जवाब दिया- 'कभी नहीं'। आरज़ू ने घबरा कर फ़िर पूछा- 'क्यूँ?' तो ज़िन्दगी ने जवाब दिया 'अगर तू ही पूरी हो गई तो इंसान जीएगा कैसे!!!???' ये सुन कर आरज़ू मायूस हो गई और अपने आँचल के अन्दर सुबक-सुबक कर रोने लगी।"
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