क्यूँ अब मर्ज़ी, दूसरों के आगे बेजान है मेरी

निदा की सरगोशी और रुख़ से पहचान है मेरी
क्यूँ अब मर्ज़ी, दूसरों के आगे बेजान है मेरी

सब कुछ है अपना मगर अब लगता है 
शख्सियत क्यूँ सबसे अनजान है मेरी

वक़्त जो गुज़र गया उसे याद करना क्या
क्यूँ यादों में अटकी अब भी जान है मेरी

1 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

वक़्त जो गुज़र गया उसे याद करना क्या
क्यूँ यादों में अटकी अब भी जान है मेरी

बस यही यादें ही तो परेशान करती हैं…………सुन्दर रचना।

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