धीरे-धीरे, वक़्त के साथ, जवानी बदकारी के अड्डों की सौग़ात बन जायेगी !!


धीरे-धीरे, वक़्त के साथ 
ये उम्र ख़त्म हो जायेगी !

धीरे-धीरे, वक़्त के साथ
ये ज़िन्दगी यादों की किताब बन जायेगी !

धीरे-धीरे, वक़्त के साथ
साँसे ज़िन्दगी पर उधार बन जायेंगी !

धीरे-धीरे, वक़्त के साथ
दौलत के भेड़ियों की दुनियाँ बन जायेगी !

धीरे-धीरे, वक़्त के साथ
ये बस्ती अपने ही लोगों के हाथों लुट जायेगी !

धीरे-धीरे, वक़्त के साथ
जवानी बदकारी के अड्डों की सौग़ात बन जायेगी !

... तो फ़िर ऐसी दुनियाँ में रहने का क्या फायेदा
लगा दो इसमें आग, भस्म कर दो इसे...
या फ़िर उठा लो मशाल एक तबदीली की, इस उम्मीद के साथ
शायेद दुनियाँ बदल ही जायेगी ......!! 

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