किस जतन से आपके और क़रीब आऊं मैं
केवल आपको ही अपना बनाऊं मैं !
पास हो कर भी हम दूर हैं इतने
किस सदा से आपको बुलाऊं मैं !
शाम-सुबह बे-क़रार रहता हूँ
कहाँ चन्द लम्हे का चैन पाऊँ मैं !
धुप है तेज़, कहीं ज़रा सी छाँव नहीं
बादलों को अब कहाँ से लाऊँ मैं !
एक पल भी याद से आपकी ग़ाफिल नहीं
अब ख़ूब कहते हैं, भूल जाऊं मैं !!
2 टिप्पणियाँ:
एक पल भी याद से आपकी ग़ाफिल नहीं
अब ख़ूब कहते हैं, भूल जाऊं मैं !!
वाह ! खूब अन्दाज़ है।
vandana jee pichhle ek saal se ek aap hi hain jo mere nagmaa-o-dard ke saath saath rahi... aapka shukriya !!!
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