'गर तुम्हें मुझसे मोहब्बत हो तो सुनो...
मोहब्बत की आग ऐसी भी हो सकती है
कि समाजों की रस्में भी टूट सकती है
तुम इन रस्मों को निभाने के लिए ही आ जाओ !
इश्क़ में कभी ना कभी ऐसे दिन भी आ सकते हैं
कि चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हमारी तक़दीर बदलने के लिए ही आ जाओ !
सन्नाटे में भी एक शोर सुनाई दे सकता है
कि मुझको सिर्फ़ तू ही दिखाई दे सकता है
तुम मेरे इस भरम को रखने के लिए ही आ जाओ !
लाख अँधेरे में भी उम्मीद की लौ जल सकती है
मायूसी की रात में भी चाँदनी नज़र आ सकती है
तुम इन मायूसी को मिटाने के लिए ही आ जाओ !
लेकिन अब तुम जो आना तो सिर्फ़ मेरे लिए ही आओ
मुझ को अपने आगोश में सिर्फ़ लेने के लिए ही आओ !
सिर्फ़ दुनिया को दिखाने के लिए ना आओ
सिर्फ़ मुझपर एहसान जताने लिए ना आओ !
'गर मुझसे मोहब्बत ना हो तो ना आओ
सिर्फ़ अपनी रस्म निभाने के लिए ना आओ !
'गर तुम्हें मोहब्बत ना हो तो ना आओ !!
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