तुम चली गयीं तो जैसे रौशनी चली गयी
ज़िन्दा होते हुए भी जैसे ज़िन्दगी चली गयी
मैं उदास हूँ यहाँ और ग़मज़दा हो तुम वहाँ
ग़मों की तल्खियों में जैसे हर ख़ुशी चली गयी
महफ़िल भी है जवाँ और जाम भी छलक रहे
प्यास अब रही नहीं जैसे तिशनगी चली गयी
दुश्मनान-ए-इश्क़ भी खुश हैं मुझको देखकर
वो समझते है मुझमें अब दीवानगी चली गयी
तुम जो थी मेरे क़रीब तो क्या न था यहाँ 'सलीम'
इश्क़ की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गयी
22 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन ग़ज़ल| कमाल है .......दिल से मुबारकबाद|
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
मैं उदास हूँ यहाँ और ग़मज़दा हो तुम वहाँ
ग़मों की तल्खियों में जैसे हर ख़ुशी चली गयी...
बहुत खूब ...
तुम जो थी मेरे क़रीब तो क्या न था यहाँ 'सलीम'
इश्क़ की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गयी ..
वाह ...
बहुत अच्छी तासीर ग़ज़ल की ...
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां .....बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
@संजय भास्कर जी, आपका बहुत-बहुत शुकिया !
क्षितिजा जी, आपका बहुत-बहुत शुकिया !
sada जी, आपका बहुत-बहुत शुकिया !
ek achhci rachna ke liye dil se mubaraqbad
सलीम भाई ग़ज़ब का दर्द छुपाये हो दिल में कभी मुलाक़ात होगी तो पूछूँगा की कितना दर्द है और क्यों है
हमेशा की तरह एक अच्छी प्रस्तुति
दुश्मनान-ए-इश्क़ भी खुश हैं मुझको देखकर
वो समझते है मुझमें अब दीवानगी चली गयी
waah
darde dil ko bayan karti ek ghazal
इश्क की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गई...
सुंदर और भावमयी ग़ज़ल।
@Zakir bhai dhanywad!
@verma jee aapka bahut bahut shukriya!
आपकी दावत पर तो आए थे हम ।
आप कहते हैं कि जिंदगी चली गई ।।
तुम चली गयीं तो जैसे रौशनी चली गयी
ज़िन्दा होते हुए भी जैसे ज़िन्दगी चली गयी
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल! बेहतरीन!
प्रेमरस.कॉम पर
दैनिक जागरण में: हिंदी से हिकारत क्यों
तुम जो थी मेरे क़रीब तो क्या न था यहाँ 'सलीम'
इश्क़ की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गयी
Behad khoobsoorat gazal kahee hai aapne!
@aNWAR BHAI SHUKRIYA APKA
@SHAHNAWAZ BHAI AAPKA SHUKRIYA !
@KSHAM JEE AAPKA SHUKRIYA
वाह सलीम भाई, कमाल की गज़ल निकाली है. आनन्द आ गया.
sameer sir jee aap is nacheez ke blog par aaye AAPKA BAHUT BAHUT SHUKRIYA !
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