जिसका हम दीदार करते थे, वो सितारा ही बिखर गया


आसमान देखने की भी हसरत बाक़ी नहीं रही दिल में
जिसका हम दीदार करते थे, वो सितारा ही बिखर गया

मेरी निगाहों में बसे अश्क़ों का आलम ना पूछो
आसमान ऐसे रोने लगा, रोते रोते ही बिखर गया

ना आया करो काग़ज़ की दुनियाँ में, कहीं जल ना जाये
आफ़ताब पर मेरी इस गुज़ारिश का अब असर गया !


अब उसकी नज़र मुझपे टिकती ही नहीं या फ़िर
मेरी ही नज़र से अब हो वह बद-नज़र गया

6 टिप्पणियाँ:

kshama ने कहा…

ना आया करो काग़ज़ की दुनियाँ में, कहीं जल ना जाये
आफ़ताब पर मेरी इस गुज़ारिश का अब असर गया !
Kya baat kah daalee hai!

Saleem Khan ने कहा…

thanks kshama jee !!!

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बेहतरीन पोस्ट .बधाई !

सदा ने कहा…

ना आया करो काग़ज़ की दुनियाँ में, कहीं जल ना जाये
आफ़ताब पर मेरी इस गुज़ारिश का अब असर गया !

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

vandana gupta ने कहा…

ना आया करो काग़ज़ की दुनियाँ में, कहीं जल ना जाये
आफ़ताब पर मेरी इस गुज़ारिश का अब असर गया !

बहुत खूब्।

Saleem Khan ने कहा…

@ BAJAJ SAHAB,

@ SADA JEE,

@ AND SADABAHAAR VANDANAA JEE

AAP SABKA SHUKRIYA !!!

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