ख़्वाबों में आपकी आमद की ललक मुझे रोज़ सुला देती है
आँखों में आपकी यादों की कसक मुझे रोज़ रुला देती है
याद है मुझे आग के साथ खेलने के वो दिन आज भी
अब तो हवा ही एक झोंके में मुझे रोज़ जला देती है
मज़बूत इतना था जब पत्थर भी फ़ना थे मेरे आगे
अब तो ज़ख्म की एक सिहरन ही मुझे रोज़ हिला देती है
1 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब
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